Tuesday, December 4, 2018

ईश्वर क्या है ?



हमेंशा से इस तरह की बाते होती रहती है कि ईश्वर क्या है ?  वह है भी या नहीं है ,
कुछ बुद्धजीवी भगवान के अस्तित्व को सिरे से नकार देते है, तो कुछ स्वीकार करते है कि कोई परम सत्ता तो है पर वो भगवान् है या कुछ और ये नहीं जानते, कुछ मानते तो है पर पूरी तरह से विश्वास नहीं करते हैं

यह लेख उन लोगों के लिए एक दिलचस्प हो सकता है जो भगवान में विश्वास करते हैं 
और 
जो भगवान पर विश्वास नहीं करते हैं!


यह प्यारा सा दृष्टांत डॉ. वेन डायर द्वारा लिखित "Your Sacred Self" से लिया गया है।  आशा करते है ये हमें उस परम सत्ता के बारे में सोचने पर विवश करेंगा :

 एक बार एक मां के गर्भ २ जुड़वाँ बच्चे थे, वे  दोनों रोज आपस में बातें करते, उनकी बातों का एक अंश कुछ इस प्रकार है : 

एक ने दूसरे से पूछा: "भाई क्या तुम प्रसव के बाद जीवन में विश्वास करते हो ?" 

दूसरे ने जवाब दिया, "बिल्कुल, क्यों?  शायद हम खुद को तैयार करने के लिए यहां हैं, जो हम बाद में करना हैं "

पहले कहा, "बकवास!"  "प्रसव के बाद कोई जिंदगी नहीं है! हमारा जीवन बस यही तक है "

दूसरे ने कहा, "मुझे नहीं पता, लेकिन यहां से अधिक हल्का होगा। शायद हम अपने पैरों पर चलेंगे और अपने हाथों से मुंह में खाना पहुचायेंगे और खाएंगे। शायद हमारे पास अन्य इंद्रियां भी होंगी जिन्हें हम अभी समझ नहीं पा रहे  हैं। "

पहले जवाब दिया, "ये सब बेतुकी बातें है। चलना असंभव है। और हमारे मुंह से खाना? यह भी     हास्यास्पद है! नाभि की नली से हमें जो कुछ भी चाहिए उसकी आपूर्ति हो जाती है, लेकिन यह नली इतनी छोटी है। प्रसव के बाद का जीवन को तार्किक रूप से संभव नहीं है। "

दूसरे ने जोर देकर कहा, "ठीक है, मुझे लगता है कि कुछ है और शायद यह उससे अलग है। शायद हमे इस नली की आवश्यकता नहीं होगी बाद में हमें अपने पोषण की पूर्ति स्वयं करनी होगी  । "

पहले जवाब दिया,"बकवास। और इसके अलावा यदि जीवन है, तो वहां से कोई भी वापस क्यों नहीं  आया है? प्रसव ही जीवन का अंत है, और हां ये याद रखो यहाँ से बाहर (प्रसव के बाद) केवल अंधेरा है, भयंकर सन्नाटा है और विस्मृति के अलावा कुछ भी नहीं है। "

दूसरे ने कहा, "ठीक है, हो सकता है कि तुम सही कह रहे हो, मुझे अधिक नहीं पता," लेकिन निश्चित रूप से हम माँ से मिलेंगे और वह हमारी देखभाल करेगी। "
पहले जवाब दिया  "माँ? क्या तुम वास्तव में "माँ" में विश्वास करते हो?" यह बात वाकई हास्यास्पद है।   "अगर माँ मौजूद है तो वह अब कहाँ है? "

दूसरे ने कहा, "वह हमारे चारों तरफ है। हम उससे घिरे हुए हैं। हम उसके हैं, हम उसमे ही रहते हैं। उसके बिना हमारा अस्तित्व ही नहीं हो सकता है, और इस दुनिया का भी अस्तित्व में नहीं हो सकता है. "

पहले कहा:ठीक है, हो सकता है, पर मैंने तो उसे कभी नहीं देखा, इसलिए मैं  मानता हूँ  कि ये केवल बातें है, तार्किक दॄष्टि में उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है।"

जिस पर दूसरे ने जवाब दिया, "कभी-कभी, जब आप शान्त होते हैं और आप ध्यान से सुनते हैं, तो आप उसकी उपस्थिति को समझ सकते हैं, और आप उसकी प्रेमपूर्ण आवाज भी सुन सकते हैं, परन्तु शर्त इतनी ही है कि  आपको थोड़ा ध्यान से सुनना पड़ेगा। "

मुझे लगता है कि भगवान को और जीवन को समझने के लिए इससे बेहतर व्याख्या नहीं हो सकती। 
जैसे एक गर्भस्त शिशु को बाहर की दुनिया के बारे में कुछ भी पता नहीं होता है, परन्तु एक विस्वास है कि शायद इसके बाद भी जीवन है और दूसरी दुनिया बहुत सूंदर होगी।, 
एक आस्था है की माँ होती है जिसके भीतर ही शिशु की पूरी दुनिया है, वही तो उसका पोषण करती है. उसके बगैर तो शिशु का अस्तित्व ही संभव ही नहीं है। 
वैसे ही हम भी तो इस प्रकृति माँ के गर्भ में है हमें लगता है की यही सब कुछ है, इस दुनिया को ही हम सबकुछ मान बैठे है, इस बात पर हमें विश्वास ही नहीं होता कि इसके आलावा भी कुछ हो सकता है. हम मृत्यु के बाद जीवन पर विश्वास ही नहीं कर पाते है, हमें लगता है कि ये सब कपोल कल्पनाये हैं. चूँकि हम प्रसव और उसके पश्चात के जीवन जानकारी है इसलिए हमें लगता है की ऊपर जो चर्चा दोनों शिशुओं के बीच हो रही यही वो कितनी सार्थक है. 
प्रथम शिशु माँ के अस्तित्व को कर प्रसवोपरांत जीवन को ही नकार रहा है, जबकि द्वितीय शिशु पूर्ण आस्था के साथ माँ के अस्तित्व की अनुभूति करता है और प्रसवोपरांत सुन्दर जीवन की कल्पना करता है 

आप ही बताएं कि क्या यह  'भगवान' की अवधारणा के लिए सबसे अच्छी व्याख्याओं में से एक हो सकती हैं !

Friday, September 21, 2018

दूसरे की गलती से सीखें

👉 दूसरे की गलती से सीखें

🔷 किसी जंगल में एक सिंह, एक गधा और एक लोमड़ी रहते थे। तीनों में गहरी मित्रता थी। तीनों मिलकर जंगल में घूमते और शिकार करते। एक दिन वे तीनों शिकार पर निकले। उन तीनों में पहले से ही यह समझौता था कि मारे गए शिकार के तीन भाग किए जाएंगे।

🔶 अचानक उन्होंने एक बारहसिंगा देखा। वह खतरे से बेखबर घास चर रहा था। तीनों ने मिलकर उसकी पीछा किया और अंत में सिंह ने उसे मार गिराया।

🔷 तब सिंह ने गधे से कहा कि वह मरे हुए शिकार के तीन भाग करें। गधे ने शिकार के तीन भाग किए और सिंह से अपना एक भाग ले लेने के लिए कहा। यह देखकर सिंह क्रोधित हो गया। उसने गधे पर हमला कर दिया और अपने नुकीले दातों और पंजों से गधे को चीर-फाड़ दिया।

🔶 उसके बाद उसने लोमड़ी से कहा कि वह अपना हिस्सा ले ले। लोमड़ी बहुत चालाक और बुद्धिमान थी। उसने बारहसिंगे का तीन चौथाई से अधिक भाग सिंह की सेवा में अर्पित कर दिया और अपने लिए केवल एक चौथाई से भी कम भाग रखा। यह देखकर सिंह बहुत प्रसन्न हुआ और बोला- ”तुमने मेरे भोजन की सही मात्रा निकाली है। सच बताओ, कहां से यह चतुराई सीखी?“

🔷 चालाक लोमड़ी बोली- ”महाराज! मरे हुए गधे को देखकर मैं सब समझ गई। उसकी मूर्खता से ही मैंने सीखा है।“

शिक्षा – दूसरे की गलती से सीखें, दूसरों की गलतियों से सीख हासिल करनी चाहिए।

Tuesday, June 26, 2018

बन्दर





बन्दरों का एक समूह था, जो फलो के बगिचों मे फल तोड़ कर खाया करते थे। माली की मार और डन्डे भी खाते थे, रोज पिटते थे ।

उनका एक सरदार भी था जो सभी बंदरो से ज्यादा समझदार था। एक दिन बन्दरों के कर्मठ और जुझारू सरदार ने सब बन्दरों से विचार-विमर्श कर निश्चय किया कि रोज माली के डन्डे खाने से बेहतर है कि यदि हम अपना फलों का बगीचा लगा लें तो इतने फल मिलेंगे की हर एक के हिस्से मे 15-15 फल आ सकते है, हमे फल खाने मे कोई रोक टोक भी नहीं होगी और हमारे अच्छे दिन आ जाएंगे ।

सभी बन्दरों को यह प्रस्ताव बहुत पसन्द आया । जोर शोर से गड्ढे खोद कर फलो के बीज बो दिये गये ।

पूरी रात बन्दरों ने बेसब्री से इन्तज़ार किया और सुबह देखा तो फलो के पौधे भी नहीं आये थे ! जिसे देखकर बंदर भड़क गए और सरदार को गरियाने लगे और नारे लगाने लगे, "कहा है हमारे 15-15 फल", "क्या यही अच्छे दिन है?"। सरदार ने इनकी मुर्खता पर अपना सिर पिट लिया और हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हुए बोला, "भाईयो और बहनो, अभी तो हमने बीज बोया है, मुझे थोड़ा समय और दे दो, फल आने मे थोड़ा समय लगता है।" इस बार तो बंदर मान गए।

दो चार दिन बन्दरों ने और इन्तज़ार किया, परन्तु पौधे नहीं आये, अब मुर्ख बन्दरों से नही रहा गया तो उन्होंने मिट्टी हटाई - देखा फलो के बीज जैसे के तैसे मिले ।
बन्दरों ने कहा - सरदार फेकु है, झूठ बोलते हैं । हमारे कभी अच्छे दिन नही आने वाले । हमारी किस्मत में तो माली के डन्डे ही लिखे हैं और बन्दरों ने सभी गड्ढे खोद कर फलो के बीज निकाल निकाल कर फेंक दिये । पुन: अपने भोजन के लिये माली की मार और डन्डे खाने लगे ।

- जरा सोचना कहीं आप बन्दरों वाली हरकत तो नहीं कर रहे हो?

60 वर्ष.......4 वर्ष

एक परिपक्व समाज का उदाहरण पेश करिये बन्दरों जैसी हरकत मत करिये...
देश धीरे धीरे बदल रहा है नई नई ऊंचाइयां छू रहा है, जो भी जोखिम भरे कदम बहुत पहले ले लेने चाहिए थे, वह अब लिये जा रहे हें आवश्यकता है तो सिर्फ और सिर्फ साथ की क्योंकि बहुत बड़े बड़े काम होने अभी बांकी हैं, धीरज रखिए। 

Tuesday, June 12, 2018

"उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत" उठो जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक आगे बढ़ते रहो.

"उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत" 

उठो जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक आगे बढ़ते रहो.


एक लड़का था.  बहुत ब्रिलियंट था. सारी जिंदगी फर्स्ट आया. साइंस में हमेशा 100% स्कोर किया. अब ऐसे लड़के आम तौर पर इंजिनियर बनने चले जाते हैं, सो उसका भी सिलेक्शन हो गया IIT चेन्नई  में.  वहां से B Tech किया और वहां से आगे पढने अमेरिका चला गया. वहां से आगे की पढ़ाई पूरी की. M.Tech वगैरा कुछ किया होगा फिर उसने यूनिवर्सिटी ऑफ़ केलिफ़ोर्निआ से MBA किया.
.
अब इतना पढने के बाद तो वहां अच्छी नौकरी मिल ही जाती है. सुनते हैं कि वहां भी हमेशा टॉप ही किया. वहीं नौकरी करने लगा. बताया जाता है कि 5 बेडरूम का घर था उसके पास. शादी यहाँ चेन्नई की ही एक बेहद खूबसूरत लड़की से हुई थी. बताते हैं कि ससुर साहब भी कोई बड़े आदमी ही थे, कई किलो सोना दिया उन्होंने अपनी लड़की को दहेज़ में.
.
अब हमारे यहाँ आजकल के हिन्दुस्तान में इस से आदर्श जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती. एक आदमी और क्या मांग सकता है अपने जीवन में? पढ़ लिख के इंजिनियर बन गए, अमेरिका में सेटल हो गए, मोटी तनख्वाह की नौकरी, बीवी बच्चे, सुख ही सुख, इसके बाद हीरो हेरोइने सुखपूर्वक वहां की साफ़ सुथरी सड़कों पर भ्रष्टाचार मुक्त माहौल में सुखपूर्वक विचरने लगे, The End.
.
अब एक दोस्त हैं हमारे, भाई नीरज जाट जी. एक नंबर के घुमक्कड़ हैं, घर कम रहते हैं सफ़र में ज्यादा रहते हैं.  ऐसी ऐसी जगह घूमने चल पड़ते हैं पैदल ही, 4 -6 दिन पहाड़ों पर घूमना, trekking करना उनके लिए आम बात है. ऐसे ऐसे दुर्गम स्थानों पर जाते है, फिर आ के किस्से सुनाते हैं,ब्लॉग लिखते हैं. उनका ब्लॉग पढ़ के मुझे थकावट हो जाती है, न रहने का ठिकाना न खाने का ठिकाना (सफ़र में), फिर भी कोई टेंशन नहीं,  चल पड़े घूमने, बैग कंधे पर लाद के. मेरी बीवी कहती है अक्सर, कि एक तो तुम पहले ही आवारा थे ऊपर से ऐसे दोस्त पाल लिए, नीरज जाट जैसे, जो न खुद घर रहता है, न दूसरों को रहने देता है, बहला फुसला के ले जाता है अपने साथ. पर मुझे उनकी घुमक्कड़ी देख सुन के रश्क होता है, कितना रफ एंड टफ है यार ये आदमी, कितना जीवट है इसमें, बड़ी सख्त जान है.
.
आइये अब जरा कहानी के पहले पात्र पर दुबारा आ जाते हैं. तो आप उस इंजिनियर लड़के का क्या फ्यूचर देखते हैं लाइफ में? सब बढ़िया ही दीखता है?  पर नहीं, आज से तीन साल पहले उसने वहीं अमेरिका में, सपरिवार आत्महत्या कर ली. अपनी पत्नी और बच्चों को गोली मार कर खुद को भी गोली मार ली.  What went wrong? आखिर ऐसा क्या हुआ, गड़बड़ कहाँ हुई.
.
ये कदम उठाने से पहले उसने बाकायदा अपनी wife से discuss किया, फिर एक लम्बा suicide नोट लिखा और उसमें बाकायदा justify किया अपने इस कदम को और यहाँ तक लिखा कि यही सबसे श्रेष्ठ रास्ता था इन परिस्थितयों में. उनके इस केस को और उस suicide नोट को California Institute of Clinical Psychology ने study किया है. What went wrong?
.
हुआ यूँ था कि अमेरिका की आर्थिक मंदी में उसकी नौकरी चली गयी. बहुत दिन खाली बैठे रहे. नौकरियां ढूंढते रहे. फिर अपनी तनख्वाह कम करते गए और फिर भी जब नौकरी न मिली, मकान की किश्त जब टूट गयी, तो सड़क पे आने की नौबत आ गयी. कुछ दिन किसी पेट्रोल पम्प पे तेल भरा बताते हैं. साल भर ये सब बर्दाश्त किया और फिर अंत में ख़ुदकुशी कर ली... ख़ुशी ख़ुशी और उसकी बीवी भी इसके लिए राज़ी हो गयी, ख़ुशी ख़ुशी. जी हाँ लिखा है उन्होंने कि हम सब लोग बहुत खुश हैं, कि अब सब कुछ ठीक हो जायेगा, सब कष्ट ख़तम हो जायेंगे.
.
इस case study को ऐसे conclude किया है experts ने : This man was programmed for success but he was not trained,how to handle failure. यह व्यक्ति सफलता के लिए तो तैयार था, पर इसे जीवन में ये नहीं सिखाया गया कि असफलता का सामना कैसे किया जाए.
.
आइये ज़रा उसके जीवन पर शुरू से नज़र डालते हैं. बहुत तेज़ था पढने में, हमेशा फर्स्ट ही आया. ऐसे बहुत से Parents को मैं जानता हूँ जो यही चाहते हैं कि बस उनका बच्चा हमेशा फर्स्ट ही आये, कोई गलती न हो उस से. गलती करना तो यूँ मानो कोई बहुत बड़ा पाप कर दिया और इसके लिए वो सब कुछ करते हैं, हमेशा फर्स्ट आने के लिए.  फिर ऐसे बच्चे चूंकि पढ़ाकू कुछ ज्यादा होते हैं सो खेल कूद, घूमना फिरना, लड़ाई झगडा, मार पीट, ऐसे पंगों का मौका कम मिलता है बेचारों को,12 th कर के निकले तो इंजीनियरिंग कॉलेज का बोझ लद गया बेचारे पर, वहां से निकले तो MBA और अभी पढ़ ही रहे थे की मोटी तनख्वाह की नौकरी. अब मोटी तनख्वाह तो बड़ी जिम्मेवारी, यानी बड़े बड़े targets.
.
कमबख्त ये दुनिया साली, बड़ी कठोर है और ये ज़िदगी, अलग से इम्तहान लेती है. आपकी कॉलेज की डिग्री और मार्कशीट से कोई मतलब नहीं उसे. वहां कितने नंबर लिए कोई फर्क नहीं पड़ता. ये ज़िदगी अपना अलग question paper सेट करती है. और सवाल साले,सब out ऑफ़ syllabus होते हैं, टेढ़े मेढ़े, ऊट पटाँग और रोज़ इम्तहान लेती है. कोई डेट sheet नहीं.
.
एक बार एक बहुत बड़े स्कूल में हम लोग summer camp ले रहे थे दिल्ली में. Mercedeze और BMW में आते थे बच्चे वहां. तभी एक लड़की, रही होगी यही कोई 7-8 साल की, अचानक जोर जोर से रोने लगी. हम लोग दौड़े, क्या हुआ भैया, देखा तो वो लड़की गिर गयी थी. वहां ज़मीन कुछ गीली थी सो उसके हाथ में ज़रा सी गीली मिटटी लग गयी थी और थोड़ी उसकी frock में भी. सो वो जार जार रो रही थी. खैर हमने उसके हाथ धोये और ये बताया कि कुछ नहीं हुआ बेटा, ये देखो, धुल गयी मिटटी. खैर साहब थोड़ी देर में उसकी माँ आ गयी, high heels पहन के और उसने हमारी बड़ी क्लास लगाई कि आप लोग ठीक से काम नहीं करते हो, लापरवाही करते हो, कैसे गिर गया बच्चा, अगर कुछ हो जाता तो? सचमुच इतना बड़ा हादसा, भगवान् न करे किसी के साथ हो जीवन में.
.
एक और आँखों देखी घटना है मेरी. कैसे माँ बाप अपने बच्चों को spoil करते हैं. हम लोग एक स्कूल में एक और कैंप लगा रहे थे, बच्चे स्कूल बस से आते थे. ड्राईवर ने जोर से ब्रेक मारी तो एक बच्चा गिर गया और उसके माथे पे हलकी सी चोट लग गयी, यही कोई एक सेन्टीमीटर का हल्का सा कट. अब वो बच्चा जोर जोर से रोने लगा, बस यूँ समझ लीजे, चिंघाड़ चिंघाड़ के, क्योंकि उसने वो खून देख लिया अपने हाथ पे. खैर मामूली सी बात थी, हमने उसे फर्स्ट ऐड दे के बैठा दिया. तभी भैया, यही कोई 10 मिनट बीते होंगे, उस बच्चे के माँ बाप पहुँच गए स्कूल और फिर वहां जो रोआ राट मची. वो बच्चा जितनी जोर से रोता, उसकी माँ उस से ज्यादा जोर से चिंघाड़ती और उसका बाप जोर जोर से चिल्ला रहा था, पागलों की तरह. मेरे बच्चे को सर में चोट लगी है, आप लोग अभी तक हॉस्पिटल ले के नहीं गए? अरे ये तो न्यूरो का केस है सर में चोट लगी है.
.
मेरा एक दोस्त जो वहां PTI था उसके साथ हम एक स्थानीय neurology के हॉस्पिटल में गए. अब अस्पताल वालों को तो बकरा चाहिए काटने के लिए. वहां पर भी उस लड़के का बाप CT Scan, Plastic surgery न जाने क्या क्या बक रहा था. पर finally उस अस्पताल के doctors ने एक BANDAID लगा के भेज दिया.
.
एक और किस्सा उसी स्कूल का, एक श्रीमान जी सुबह सुबह आ के लड़ रहे थे, क्या हुआ भैया, स्कूल बस नहीं आयी, हमें आना पड़ा छोड़ने. बाद में पता चला श्रीमान जी का घर स्कूल से बमुश्किल 200 मीटर दूर, उसी कालोनी में तीन सड़क छोड़ के था और लड़का उनका 10 साल का था.
.
क्या बनाना चाहते हैं आज कल के माँ बाप अपने बच्चों को? ये spoon fed बच्चे जीवन के संघर्षों को कैसे या कितना झेल पाएंगे?
.
आज से लगभग 15 साल पहले, मेरा बड़ा बेटा 4-5 साल का था, अपने खेत पे जा रहे थे हम. बरसात का season था, धान के खेतों में पानी भरा था. मेरे बेटे ने मुझे कहा, पापा, मुझे गोदी उठा लो. मैंने कहा कुछ नहीं होता बेटा, पैदल चलो और वो चलने लगा और थोड़ी ही देर बाद पानी में गिर गया. कपडे सब कीचड में सन गए. अब वो रोने लगा, मैंने फिर कहा कुछ नहीं हुआ बेटा, उठो, वो वहीं बैठा बैठा रो रहा था. उसने मेरी तरफ हाथ बढाए, मैंने कहा अरे पहले उठो तो और वो उठ खड़ा हुआ. मैंने उसे सिर्फ अपनी ऊँगली थमाई और वो उसे पकड़ के ऊपर आ गया. हम फिर चल पड़े. थोड़ी देर बाद वो फिर गिर गया, पर अबकी बार उसकी प्रतिक्रिया बिलकुल अलग थी. उसने सिर्फ इतना ही कहा, अर्रे... और हम सब हंस दिए. वो भी हंसने लगा और फिर अपने आप उठा और ऊपर आ गया. मुझे याद है उस साल हम दोनों बाप बेटा बीसों बार उस खेत पे गए होंगे, वो उसके बाद वहां से आते जाते कभी नहीं गिरा.
.
कल मैं नीरज जाट जी की करेरी झील की trekking वाली पोस्ट पढ़ रहा था. 4 दिन उस सुनसान बियाबान में, जिसका रास्ता तक नहीं पता, इतनी बारिश और ओला वृष्टि में, ऊपर से ले कर नीचे तक भीगे, भूखे प्यासे, न रहने का ठिकाना न सोने का. उस कीचड भरे मंदिर के कमरे में, उस बिना chain वाले स्लीपिंग बैग में रात बिता के भी, कितने खुश थे. इतना संघर्ष शील आदमी, क्या जीवन में कभी हार मानेगा?
.
काश कार्तिक राजाराम, जी हाँ यही नाम था उस लड़के का. उसे भी बचपन में गिरने की, गिर गिर के उठने की, बार बार हारने की और हार के बार बार जीतने की ट्रेनिंग मिली होती.
.
कठोपनिषद में एक मंत्र है, उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत. उठो जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक आगे बढ़ते रहो. शुरू से ही अपने बच्चों को इतना कोमल, इतना सुकुमार मत बनाइये कि वो इस ज़ालिम दुनिया के झटके बर्दाश्त न कर सके.
.
एक अंग्रेजी उपन्यास में एक किस्सा पढ़ा था. एक मेमना अपनी माँ से दूर निकल गया. आगे जा कर पहले तो भैंसों के झुण्ड से घिर गया. उनके पैरों तले कुचले जाने से बचा किसी तरह. अभी थोडा ही आगे बढ़ा था कि एक सियार उसकी तरफ झपटा. किसी तरह झाड़ियों में घुस के जान बचाई तो सामने से भेड़िये आते दिखे. बहुत देर वहीं झाड़ियों में दुबका रहा, किसी तरह माँ के पास वापस पहुंचा तो बोला, माँ, वहां तो बहुत खतरनाक जंगल है. Mom, there is a jungle out there.
.
इस खतरनाक जंगल में जिंदा बचे रहने की ट्रेनिंग अभी से अपने बच्चों को दीजिये.।

******स्वयंप्रकाश जी वाल से साभार*****

Wednesday, May 30, 2018

मृत्यु का भय

मृत्यु का भय छोड़ दीजिए।
  
बालक मरें, चाहे जवान या बूढ़े मरें, हम इससे भयभीत क्यों हों? कोई पल ऐसा नहीं जाता जब इस जगत में कही किसी का जन्म और कही किसी की मृत्यु होती है। पैदा होने पर खुशियाँ मनाना और मौत से डरना बड़ी मूर्खता है, यह बात हमें अवश्य सदैव अनुभव करनी चाहिए। जो लोग आत्मवादी हैं, - और हममें कौन हिन्दू, मुसलमान या पारसी ऐसा होगा जो आत्मा के अस्तित्व को न मानता होगा? - वे जानते हैं कि आत्मा कभी मरती नहीं।

यही नहीं, बल्कि जीवित और मृत समस्त प्राणी एक ही हैं, उनके गुण भी एक ही हैं। इस दशा में, जबकि जगत में उत्पत्ति और लय पल पल-पर होता ही रहता है, हम क्यों खुशियाँ मनावें? और किस लिए शोक करें? सारे देश को यदि हम अपना परिवार मानें- देश में जहाँ कहीं किसी का जन्म हुआ हो, उसे अपने यहाँ ही हुआ मानें- तो कितने जन्मोत्सव मनाइयेगा? देश में जहाँ-जहाँ मौतें हों उन सबके लिए यदि हम रोते रहें तो हमारी आँखों के आँसू कभी बन्द ही न हों। यह सोचकर हमें मृत्यु का भय छोड़ देना चाहिए।

अन्य देशों की अपेक्षा प्रत्येक भारतवासी अधिक ज्ञानी, अधिक आत्मवादी होने का दावा रखता है, तिस पर भी मौत के सामने जितने दीन हम हो जाते हैं उतने और लोग शायद ही होते हों और उनमें भी मेरा खयाल है कि हिन्दू लोग जितने अधीर हो जाते हैं उतने भारत के दूसरे लोग नहीं। अपने यहाँ किसी का जन्म होते ही हमारे घरों में आनन्द मंगल उमड़ पड़ता है और जब कोई मर जाता है तब इतना रोना पीटना मचता है कि आस-पास के लोग भी हैरान हो जाते हैं। हमें इस अज्ञान जन्य हर्ष शोक को छोड़ ही देना चाहिए।

महात्मा गाँधी