Monday, September 9, 2019

क्या होगा भविष्य में ?



आज जो अशांति, निराशा और विध्वंस ही विध्वंस हर ओर पसरा दीखायी दे रहा है, तो हमारे मन में कहीं १ प्रश्न उठता है कि आने वाले दिनों में क्या होगा इस दुनिया का. 
कही किसी सिरफिरे ने परमाणु युद्ध शुरू कर दिया तो क्या होगा?
क्या यह नस्ट हो जाएगी ?

ऐसे में परम पूज्य गुरुदेव, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा की गयी यह भविष्यवाणी  मन को सम्बल दे जाती हैं और आने वाले सुखद भविष्य का आभाष कराती है 

लगता  कि सभी संकट १ - १ करके टल जायेंगे, अणु युद्ध और विश्वयुध्द नहीं होगा और यह पृथ्वी भी वैसी ही बनी रहेगी जैसी अभी है.  
प्रदुषण को मनुष्य ना सम्हाल पायेगा तो अंतरिक्षिय प्रवाह उसका परिशोधन करेंगे। 

जनसँख्या जिस तेजी से बढ़ रही है वह दौड़ एक दसाब्दी में आधी रह जाएगी। 

रेगिस्तान और ऊसरो को उपजाऊ बनाया जायेगा और नदियों को समुद्र तक पहुंचने से पहले ही बांध कर 
सिचाई तथा अन्य परयोजनो के लिए पानी उपलब्ध कराया जायेगा. 

प्रजातंत्र में चल रही  धांधली में कटौती होगी, उपयुक्त व्यक्ति ही वोट पा सकेंगे, अफसरों के स्थान पर पंचायते और जन सहयोग से ऐसे प्रयास चलपडेंगे की सरकार पर निर्भरता कम होगी, 

नया नेतृत्व उभरेगा, अगले दिनों मनीषियों की ऐसी बिरादरी का उदय होगा जो देश, जाति, वर्ग के आधार पर विभाजित वर्त्तमान समुदाय को विश्वमानव स्तर की मान्यता देकर विश्व परिवार बनाकर रहने को सहमत करेंगे, तब विग्रह नहीं सृजन ही सब पर सवार रहेगा. 

विश्व परिवार की भावना दिन दिन जोर पकड़ेगी और १ दिन वह समय आएगा जब सरे विश्व के नागरिक बिना आपस में टकराये साथ साथ रहेंगे और मिलजुल कर ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करेंगे जिसे पुरातन सतयुग के समतुल्य रखा जा सकता है इसके लिए नवसृजन का उत्साह उभरेगा, 

नए लोग नये परिवेश से आगे आएंगे, जिनकी पिछले दिनों कोई चर्चा तक ना थी, वे इस तत्परता से बाग़डोर सम्हालेंगे मानो वे इसके लिए ऊपर आसमान से आये हो या धरती फाड़ कर निकले हो.

यह हमारा सपनो का संसार है, इसके पीछे कल्पनाये या अटकलें काम नहीं कर रही है, वरन अदृश्य जगत में चल रही हलचलों को देखकर आभास होता है जिसे हम सत्य को अधिक निकट देखते है.

- प. पू. गुरुदेव पंड़ित श्रीराम शर्मा  "सतयुग की वापसी" पुस्तक से 

Monday, September 2, 2019

गणेशजी के प्रतीक और उनका महत्व

 गणेशजी के प्रतीक और उनका महत्व

प्रश्न - गणेशजी के प्रतीक और उनका महत्व बताइये, हमे अपने बेटे को समझाना है। गणेश जी के गायत्री मंत्र की व्याख्या कीजिये।

उत्तर - सर्वप्रथम गणेश चतुर्थी की बधाईं स्वीकार करें।

गायत्री त्रिपदा कही जाती है। गायत्री मन्त्र के २४ अक्षर तीन पदों में विभक्त हैं। गायत्री मन्त्र के ‘ विद्महे’, ‘ धीमहि’ और  ‘ प्रचोदयात्’ शब्दों को लेकर चौबीस देवताओं की गायत्री रची गयी है। इससे गायत्री मन्त्र की पवित्रता, उच्चता और सर्वश्रेष्ठता सिद्ध होती है।

विद्महे का भावार्थ है, अपनी बुद्धि(Key skill) में धारण करने को।

‘धीमहि’ कहते हैं–ध्यान(Meditation) को।

प्रचोदयात कहते है पवित्र(Proliferation) बनाने को

गणेश गायत्री—ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।

भावार्थ - उस मंगलमय प्रकाशवान परमात्मा गणेश जी का ध्यान हम करते है, उन्हें मन बुद्धि और हृदय में धारण करने पर सब प्रकार की सुख-शान्ति, ऐश्वर्य, प्राण-शक्ति और परमपद की प्राप्ति होती है। हृदय हमारा निर्मल और पवित्र बने। हमारा जीवन श्रेष्ठ बने, और हमारी बुद्धि और हृदय पवित्र-निर्मल बने, हम सन्मार्ग पर चले।

गणेश गायत्री मंत्र क्यों जपना चाहिए? - पृथ्वी की तरह विचारो में भी गुरुत्वाकर्षण होता है। निरन्तर गणेश मंन्त्र जप से हम सद्बुद्धि, विवेकदृष्टि, सत्कर्म और भावों की पवित्रता के लिए अपने दिमाग़ में गुरुत्वाकर्षण-चुम्बकत्व पैदा करते हैं। जिसके प्रभाव से ब्रह्मांड में व्याप्त सादृश्य विचार, शक्ति और प्रभाव हमारे भीतर प्रवेश करते हैं। हम जैसे विचारों का गुरुत्वाकर्षण-आकर्षण-चुम्बकत्व पैदा करते है, धीरे धीरे हम वैसा करने लगते है और एक दिन हम वैसे बन जाते है। इसलिए अच्छे मंन्त्र जप से हम अच्छे इंसान बनते हैं। यह ब्रह्माण्ड गूगल सर्च की तरह है, जैसे विचार मंन्त्र जप द्वारा सर्च करोगे वैसे समान विचार-प्रभाव-शक्तियां तुम तक पहुंचेगा।

🙏🏻 गणेश जी के प्रतीक स्वरूप की व्याख्या 🙏🏻

गणेश जी का बड़ा सर - विवेक-सद्बुद्धि का प्रतीक है। ज्ञानर्जन हेतु सबसे ज़्यादा समय-साधन खर्च करने की प्रेरणा देता है। मानसिक आहार - स्वाध्याय और ध्यान द्वारा सद्बुद्धि-विवेक और अंतर्दृष्टि प्राप्त होती है।

बड़े कान - कहते हैं कि हमेशा सतर्क रहो, और कान के पक्के बनो। सुनी सुनाई बातों पर भरोसा मत करो। किसी के कान भरने पर बहको मत।

लम्बी सूड़ - परिस्थिति को सूंघ लो दूर से ही। अर्थात भविष्य की घटनाओं का पुर्वानुमान करके योजना बनाओ। ऐसे कार्य करो जिनके दूरगामी लाभ और परिणाम हों।

गणेश जी का एक दांत -गणेशजी एकदन्त हैं , जिसका अर्थ है एकाग्रता। जो यह कहता है कि डबल थॉट/दोहरे विचारो में मत उलझो। एक लक्ष्य निर्धारित करो और एक निष्ठ होकर उस पर डटे रहो। उठो आगे बढ़ो और तब तक मत रुको, जबतक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये।

गणेशजी का बड़ा पेट -  उदारता और आत्मीयता का प्रतीक है। अपने अंदर इतनी आत्मीयता रखो कि सर्वत्र बांटो।

गणेशजी का ऊपर उठा हुआ हाथ रक्षा का प्रतीक है – अर्थात, ‘घबराओ मत, मैं तुम्हारे साथ हूँ’ और उनका झुका हुआ हाथ, जिसमें हथेली बाहर की ओर है,उसका अर्थ है, अनंत दान, और साथ ही आगे झुकने का निमंत्रण देना – यह प्रतीक है कि हम सब एक दिन इसी मिट्टी में मिल जायेंगे ।

वे अपने हाथों में अंकुश लिए हैं, जिसका अर्थ है – जागृत होना , और पाश – अर्थात नियंत्रण । जागृति के साथ, बहुत सी ऊर्जा उत्पन्न होती है और बिना किसी नियंत्रण के उससे व्याकुलता हो सकती है । मन पर नियंत्रण हेतु मन की वृत्तियों पर अंकुश लगाना अनिवार्य है।

गणेशजी, हाथी के सिर वाले भगवान क्यों एक चूहे जैसे छोटे से वाहन पर चलते हैं? क्या यह बहुत अजीब नहीं है?
 फिर से, इसका एक गहरा रहस्य है । एक चूहा उन रस्सियों को काट कर अलग कर देता है जो हमें बांधती हैं| चूहा उस मन्त्र के समान है जो अज्ञान की अनन्य परतों को पूरी तरह काट सकता है, और उस परम ज्ञान को प्रत्यक्ष कर देता है जिसके भगवान गणेश प्रतीक हैं ।

हमारे प्राचीन ऋषि इतने गहन बुद्धिशाली थे, कि उन्होंने दिव्यता को शब्दों के बजाय इन प्रतीकों के रूप में दर्शाया, क्योंकि शब्द तो समय के साथ बदल जाते हैं, लेकिन प्रतीक कभी नहीं बदलते । तो जब भी हम उस सर्वव्यापी का ध्यान करें, हमें इन गहरे प्रतीकों को अपने मन में रखना चाहिये, जैसे हाथी के सिर वाले भगवान, और उसी समय यह भी याद रखें, कि गणेशजी हमारे भीतर ही हैं । यही वह ज्ञान है जिसके साथ हमें गणेश चतुर्थी मनानी चाहिये ।

अपने बच्चे को गणेश गायत्री मंत्र और उनके प्रतीक रूपों को समझाइए। उन्हें हमारी तरफ से गणेश चतुर्थी के शुभ अवसर पर ढेर सारा प्यार दीजिये।

साभार: - श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

मंदी आने वाली है

मंदी आने वाली है,

एक छोटे से शहर मे एक बहुत ही मश्हूर बनवारी लाल सामोसे बेचने वाला था। वो ठेला लगाकर रोज दिन में 500 समोसे खट्टी मीठी चटनी के साथ बेचता था रोज नया तेल इस्तमाल करता था और कभी अगर समोसे बच जाते तो उनको कुत्तो को खिला देता। बासी समोसे या चटनी का प्रयोग बिलकुल नहीं करता था, उसकी चटनी भी ग्राहकों को बहुत पसंद थी जिससे समोसों का स्वाद और बढ़ जाता था। कुल मिलाकर उसकी क्वालिटी और सर्विस बहुत ही बढ़िया थी।
उसका लड़का अभी अभी शहर से अपनी MBA की पढाई पूरी करके आया था।
एक दिन लड़का बोला पापा मैंने न्यूज़ में सुना है मंदी आने वाली है, हमे अपने लिए कुछ cost cutting करके कुछ पैसे बचाने चाहिए, उस पैसे को हम मंदी के समय इस्तेमाल करेंगे।
समोसे वाला: बेटा में अनपढ़ आदमी हु मुझे ये cost cutting wost cutting नहीं आता ना मुझसे ये सब होगा, बेटा तुझे पढ़ाया लिखाया है अब ये सब तू ही सम्भाल।
बेटा: ठीक है पिताजी आप रोज रोज ये जो फ्रेश तेल इस्तमाल करते हो इसको हम 80% फ्रेश और 20% पिछले दिन का जला हुआ तेल इस्तेमाल करेंगे।
अगले दिन समोसों का टेस्ट हल्का सा चेंज था पर फिर भी उसके 500 समोसे बिक गए और शाम को बेटा बोलता है देखा पापा हमने आज 20% तेल के पैसे बचा लिए और बोला पापा इसे कहते है COST CUTTING।
समोसे वाला: बेटा मुझ अनपढ़ से ये सब नहीं होता ये तो सब तेरे पढाई लिखाई का कमाल है।
लड़का:पापा वो सब तो ठीक है पर अभी और पैसे बचाने चाहिए। कल से हम खट्टी चटनी नहीं देंगे और जले तेल की मात्रा 30% प्रयोग में लेंगे।
अगले दिन उसके 400 समोसे बिक गए और स्वाद बदल जाने के कारन 100 समोसे नहीं बिके जो उसने जानवरो और कुत्तो को खिला दिए।
लड़का: देखा पापा मैंने बोला था ना मंदी आने वाली है आज सिर्फ 400 समोसे ही बिके हैं।
समोसे वाला: बेटा अब तुझे पढ़ाने लिखाने का कुछ फायदा मुझे होना ही चाहिए। अब आगे भी मंदी के दौर से तू ही बचा।
लड़का: पापा कल से हम मीठी चटनी भी नहीं देंगे और जले तेल की मात्रा हम 40% इस्तेमाल करेंगे और समोसे भी कल से 400 हीे बनाएंगे।
अगले दिन उसके 400 समोसे बिक गए पर सभी ग्राहकों को समोसे का स्वाद कुछ अजीब सा लगा और चटनी ना मिलने की वजह से स्वाद और बिगड़ा हुआ लगा।
शाम को लड़का अपने पिता से: देखा पापा, आज हमे 40% तेल , चटनी और 100 समोसे के पैसे बचा लिए। पापा इसे कहते है cost कटाई और कल से जले तेल की मात्रा 50% करदो और साथ में टिशू पेपर देना भी बंद करदो।
अगले दिन समोसों का स्वाद कुछ और बदल गया और उसके 300 समोसे ही बीके।
शाम को लड़का अपने पिता से: पापा बोला था ना आपको की मंदी आने वाली है।
समोसे वाला: हा बेटा तू सही कहता है मंदी आगई है अब तू आगे देख क्या करना है कैसे इस मंदी से लड़ें।
लड़का : पापा एक काम करते हैं, कल 200 समोसे ही बनाएंगे और जो आज 100 समोसे बचे है कल उन्ही को दोबारा तल कर मिलाकर बेचेंगे।
अगले दिन समोसों का स्वाद और बिगड़ गया, कुछ ग्राहकों ने समोसे खाते वक़्त बनवारी लाल को बोला भी और कुछ चुप चाप खाकर चले गए। आज उसके 100 समोसे ही बिके और 100 बच गए।
शाम को लड़का बनवारी लाल से: पापा देखा मैंने बोला था आपको और ज्यादा मंदी आएगी। अब देखो कितनी मंदी आगई है।
समोसे वाला: हाँ, बेटा तू सही बोलता है तू पढ़ा लिखा है समझदार है। अब् आगे कैसे करेगा?
लड़का: पापा कल हम आज के बचे हुए 100 समोसे दोबारा तल कर बेचेंगे और नए समोसे नहीं बनाएंगे।
अगले दिन उसके 50 समोसे ही बीके और 50 बच गए। ग्राहकों को समोसा का स्वाद बेहद ही ख़राब लगा और मन ही मन सोचने लगे बनवारी लाल आजकल कितने बेकार समोसे बनाने लगा है और चटनी भी नहीं देता कल से किसी और दुकान पर जाएंगे।
शाम को लड़का बोला, पापा देखा मंदी आज हमनें 50 समोसों के पैसे बचा लिए। अब कल फिर से 50 बचे हुए समोसे दोबारा तल कर गरम करके बचेंगे।
अगले दिन उसकी दुकान पर शाम तक एक भी ग्राहक नहीं आया और बेटा बोला देखा पापा मैंने बोला था आपको और मंदी आएगी और देखो आज एक भी ग्राहक नहीं आया और हमने आज भी 50 समोसे के पैसा बचा लिए। इसे कहते है Cost Cutting।
बनवारी लाल समोसे वाला : बेटा खुदा का शुक्र है तू पढ़ लिख लिया वरना इस मंदी का मुझ अनपढ़ को क्या पता की cost cutting क्या होता है।
और अब एक बात और सुन.....
बेटा : क्या.....????
बनवारी लाल समोसे वाला : कल से चुपचाप बर्तन धोने बैठ जाना यहाँ पर...... मंदी को मैं खुद देख लुंगा.....
आपने सही कहा ये हौवा मात्र है जो कमजोर मानसूनी हवाओं के कारण हुआ किन्तु मान सून सामान्य होते ही खत्म होना था! अफसोस हुआ नहीं, कुछ शैतान बनवारी लाल के बेटे की तरह मंदी लाने को बेताब हैं उन्हें कौन समझाए कि ये हौवा मात्र है, जो आपके अति विश्वास से आपको ही घेर लेगा!

साभार  क्वोरा (राम प्रकाश बैरड़)

Sunday, September 1, 2019

सफलता क्या है?

मुझे लगता है आज के समय में किसी भी विषय की पढाई की जाये सब को सरकारी नौकरी मिलना संभव नहीं लगता हैं, तो ऐसे में सवाल यह उठता है कि बच्चों को शिक्षा से सम्बंधित मार्गदर्शन कैसे दिया जाए. 
क्या यही अपेक्षा की जाए की वे अच्छी शिक्षा हासिल करके किसी सरकारी नौकरी में चले जाये तभी उनका जीवन सफल होगा, उनके सामने कुछ अन्य विकल्प भी रखे जाए जैसे प्रायवेट सेक्टर में नौकरी या अपना स्वयं का बिज़नेस. 

अक्सर मैंने सुना/देख़ा  है कि लोग  सरकारी नौकरी के पीछे इतने दीवाने होते है कि कहते है "एक बार सरकार में कैसी  भी नौकरी मिल जाए बस" फिर तो जीवन आराम से काट जायेगा. परन्तु हमें आज अपनी भावी पीढ़ी को गैर सरकारी क्षेत्र में सफलता के लिए भी मार्गदर्शन देना चाहिए।

मै कुछ लोगो के बारे में आपको बताना चाहता हूँ जिनको मै व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ, आप पढ़िए और फिर आप ही बताईये कि क्या आप इन्हे सफल मानते है,  या नहीं?

१. Director Operations ( कार्य निदेशक ) :
मुलताई तहसील के १ छोटे से गाँव से उसने अपनी प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की, परिवार की स्तिथि सामान्य ही थी, बड़े भाई म.प्र.वि.विभाग में थे तो उसने भी भोपाल से CPET (प्लास्टिक इंजीनियरिंग) में प्रवेश लिया, शायद उस समय म.प्र. में PET के माध्यम से प्रवेश मिलते थे. 1996 -97 अपनी पढाई पूरी करने के बाद सरकारी नौकरी के लिए प्रतियोगी परीक्षा देने लगा, परन्तु सफलता नहीं मिली और वह इंदौर में किसी प्राइवेट कम्पनी नौकरी करने लगा, वह कंपनी मशीनरी बनती थी. पूरी लगन से वह काम सीखने लगा, लगभग ५ वर्ष होगये थे उसे वहाँ काम करते हुए. 
उसकी कंपनी को १० मशीन सप्लाई और स्थापना (supply & Erection) का आर्डर एक विदेशी ग्राहक से मिला और कंपनी से उसे भेज दिया, उसने अपना काम बहुत अच्छी तरह से किया तो उस ग्राहक ने बहुत अच्छी वेतन पर उसे अपनी कंपनी का उत्पादन एवं मेंटेनेन्स प्रमुख बना दिया। उसने वहाँ भी बहुत मन लगा कर काम करके उस कंपनी को सफलता की उचाईयो पर ले गया और अगले 10 वर्षो में उसने 3  नई फैक्ट्रियां लगा दी. स्वयं के लिए भी बहूत पैसा जमा किया और गांव में कुछ खेत ख़रीदे, अपने लिए और भाई के लिए भी नये घर लिए. 

फिर १ दिन उसे अपना देश याद आने लगा और वह वापिस भारत आगया और आज वह भारत में एक प्रमुख बॉटलिंग प्लांट में director operations है. 

२. CFO  (प्रमुख वित्तीय अधिकारी) :
आज वह भारत की एक जानीमानी आईटी कंपनी में CFO हैं, परन्तु आज से 22 साल पहले जब एक छोटे से सरकारी कॉलेज में पढ़ रहा था तो किसने सोचा होगा कि वह एक दिन इतनी बड़ी सफलता हासिल कर लेगा. 
अत्यंत गरीब परिस्तिथि में १ छोटे से गाव के स्कूल से अपनी शिक्षा हासिल करने के बाद उसने १ छोटी सी नौकरी कर ली, सरकारी नौकरी की प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी और फ़ीस भरने के भी पैसे नहीं थे उसके पास, और तब तो नौकरी में आरक्षण के बारे में भी पता नहीं था उसे.  मेहनत और लगन से काम करते हुए उसने अगले १० सालो में ३ अलग अलग कंपनियों में काम करते हुए अपने काम में महारत हासिल कर ली.
इस बीच उसने दिल्ली विश्वविद्यालय से MBA किया और विदेश में अवसर ढूंढ़ने लगा, १ दिन उसे सफलता मिली कर वह अच्छे वेतनपर विदेश चला गया, कुछ वर्षो तक वहाँ रहकर उसने अपनी योग्यता को निखारा और लगातार प्रगति करता रहा, कुछ देश बदले और और १ दिन फाइनेंस कंट्रोलर के पद पर पहुच गया. घर की आर्थिक स्थिति में सुधार किया, विश्व के कुछ अन्य देशो में रह कर अपनी सेवाएं देकर लगभग  १० वर्षो बाद भारत वापस लौट आया और अब वह समाज सुधार  और पर्यावरण संरक्षण पर अपना समय देता है. 

३. R & D, Computer Software
अपने गांव से प्राथमिक शिक्षा और बैतूल से हाईस्कूल की पढाई करके उसने भोपाल के बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय से कंप्यूटर साइन्स में डिग्री हासिल की और बैंगलोर की किसी  कंपनी से अपने जीवन की शुरुआत की, पर वो वहां रुका नहीं, अपनी पढाई को आगे बढाते हुए उसने कंप्यूटर प्रोग्रामिंग की कुछ और भाषाएँ (languages) सीखी।  
आपनई योग्यता को बढ़ाते हुए उसने TCS, HCL और NOKIA जैसी कंपनियों में काम किया, उसे पूरी उम्मीद थी कि इक दिन उसकी मेहनत रंग लाएगी और वह कुछ बड़ा कर दिखायेगा।  सही अवसर आया और उसने बिना देर किये IBM में नौकरी ज्वाइन कर ली, आज वह सेनफ्रांसिस्को अमेरिका में हेड ऑफ़ आर & डी है.

ये तो केवल ३ उदहारण है, कितने ही ऐसे लोग है जिन्हे आप भी जानते होंगे, मै आप सबसे निवेदन करता हूँ कि आप भी ऐसे उदहारण प्रस्तुत करें. इस तरह से हम बच्चों को खुले तौर पर सोचने का मौका देंगे.
धन्यवाद 


प्रेम और मर्यादा

मैंने एक दिन अपनी पत्नी से पूछा क्या तुम्हे बुरा नहीं लगता मैं बार बार तुमको बोल देता हूँ डाँट देता हूँ फिर भी तुम पति भक्ति में लगी रहती हो जबकि मैं कभी पत्नी भक्त बनने का प्रयास नहीं करता?

मैं ""वेद"" का विद्यार्थी हूँ और मेरी पत्नी ""विज्ञान"" की परन्तु उसकी आध्यात्मिक शक्तियाँ मुझसे कई गुना ज्यादा हैं क्योकि मैं केवल पढता हूँ और ओ जीवन में उसका पालन करती है।

मेरे प्रश्न पर जरा ओ हँसी और बोली की ये बताइए एक पुत्र यदि माता की भक्ति करता है तो उसे मातृ भक्त कहा जाता है परन्तु माता यदि पुत्र की कितनी भी सेवा करे उसे पुत्र भक्त तो नहीं कहा जा सकता न।

मैं सोच रहा था आज पुनः ये मुझे निरुत्तर करेगी मैंने प्रश्न किया ये बताओ जब जीवन का प्रारम्भ हुआ तो पुरुष और स्त्री समान थे फिर पुरुष बड़ा कैसे हो गया जबकि स्त्री तो शक्ति का स्वरूप होती है?

मुस्काते हुए उसने कहा आपको थोड़ी विज्ञान भी पढ़नी चाहिए थी...मैं झेंप गया उसने कहना प्रारम्भ किया....दुनिया मात्र दो वस्तु से निर्मित है ""ऊर्जा""और ""पदार्थ""पुरुष ऊर्जा का प्रतीक है और स्त्री पदार्थ की। पदार्थ को यदि विकशित होना हो तो वह ऊर्जा का आधान करता है ना की ऊर्जा पदार्थ का ठीक इसी प्रकार जब एक स्त्री एक पुरुष का आधान करती है तो शक्ति स्वरूप हो जाती है और आने वाले पीढ़ियों अर्थात अपने संतानों केलिए प्रथम पूज्या हो जाती है क्योकि वह पदार्थ और ऊर्जा दोनों की स्वामिनी होती है जबकि पुरुष मात्र ऊर्जा का ही अंश रह जाता है।

मैंने पुनः कहा तब तो तुम मेरी भी पूज्य हो गई न क्योकि तुम तो ऊर्जा और पदार्थ दोनों की स्वामिनी हो?

अब उसने झेंपते हुए कहा आप भी पढ़े लिखे मूर्खो जैसे बात करते हैं आपकी ऊर्जा का अंश मैंने ग्रहण किया और शक्तिशाली हो गई तो क्या उस शक्ति का प्रयोग आप पर ही करूँ ये तो कृतघ्नता हो जाएगी।

मैंने कहा मैं तो तुमपर शक्ति का प्रयोग करता हूँ फिर तुम क्यों नहीं?

उसका उत्तर सुन मेरे आँखों में आंसू आ गए............

उसने कहा.....जिसके संसर्ग मात्र से मुझमे जीवन उत्पन्न करने की क्षमता आ गई ईश्वर से भी ऊँचा जो पद आपने मुझे प्रदान किया जिसे ""माता"" कहते हैं उसके साथ मैं विद्रोह नहीं कर सकती, फिर मुझे चिढ़ाते हुए उसने कहा कि यदि शक्ति प्रयोग करना भी होगा तो मुझे क्या आवश्यकता मैं तो माता सीता की भांति ""लव कुश""तैयार कर दूंगी जो आपसे मेरा हिसाब किताब कर लेंगे।

नमन है सभी मातृ शक्तियों को जिन्होंने अपने प्रेम और मर्यादा में समस्त सृष्टि को बांध रखा है
ऋणी हूँ मैं अपने पत्नी का जो मुझे पतन के तरफ जाने से सदैव रोक लेती है।