Monday, September 2, 2019

गणेशजी के प्रतीक और उनका महत्व

 गणेशजी के प्रतीक और उनका महत्व

प्रश्न - गणेशजी के प्रतीक और उनका महत्व बताइये, हमे अपने बेटे को समझाना है। गणेश जी के गायत्री मंत्र की व्याख्या कीजिये।

उत्तर - सर्वप्रथम गणेश चतुर्थी की बधाईं स्वीकार करें।

गायत्री त्रिपदा कही जाती है। गायत्री मन्त्र के २४ अक्षर तीन पदों में विभक्त हैं। गायत्री मन्त्र के ‘ विद्महे’, ‘ धीमहि’ और  ‘ प्रचोदयात्’ शब्दों को लेकर चौबीस देवताओं की गायत्री रची गयी है। इससे गायत्री मन्त्र की पवित्रता, उच्चता और सर्वश्रेष्ठता सिद्ध होती है।

विद्महे का भावार्थ है, अपनी बुद्धि(Key skill) में धारण करने को।

‘धीमहि’ कहते हैं–ध्यान(Meditation) को।

प्रचोदयात कहते है पवित्र(Proliferation) बनाने को

गणेश गायत्री—ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।

भावार्थ - उस मंगलमय प्रकाशवान परमात्मा गणेश जी का ध्यान हम करते है, उन्हें मन बुद्धि और हृदय में धारण करने पर सब प्रकार की सुख-शान्ति, ऐश्वर्य, प्राण-शक्ति और परमपद की प्राप्ति होती है। हृदय हमारा निर्मल और पवित्र बने। हमारा जीवन श्रेष्ठ बने, और हमारी बुद्धि और हृदय पवित्र-निर्मल बने, हम सन्मार्ग पर चले।

गणेश गायत्री मंत्र क्यों जपना चाहिए? - पृथ्वी की तरह विचारो में भी गुरुत्वाकर्षण होता है। निरन्तर गणेश मंन्त्र जप से हम सद्बुद्धि, विवेकदृष्टि, सत्कर्म और भावों की पवित्रता के लिए अपने दिमाग़ में गुरुत्वाकर्षण-चुम्बकत्व पैदा करते हैं। जिसके प्रभाव से ब्रह्मांड में व्याप्त सादृश्य विचार, शक्ति और प्रभाव हमारे भीतर प्रवेश करते हैं। हम जैसे विचारों का गुरुत्वाकर्षण-आकर्षण-चुम्बकत्व पैदा करते है, धीरे धीरे हम वैसा करने लगते है और एक दिन हम वैसे बन जाते है। इसलिए अच्छे मंन्त्र जप से हम अच्छे इंसान बनते हैं। यह ब्रह्माण्ड गूगल सर्च की तरह है, जैसे विचार मंन्त्र जप द्वारा सर्च करोगे वैसे समान विचार-प्रभाव-शक्तियां तुम तक पहुंचेगा।

🙏🏻 गणेश जी के प्रतीक स्वरूप की व्याख्या 🙏🏻

गणेश जी का बड़ा सर - विवेक-सद्बुद्धि का प्रतीक है। ज्ञानर्जन हेतु सबसे ज़्यादा समय-साधन खर्च करने की प्रेरणा देता है। मानसिक आहार - स्वाध्याय और ध्यान द्वारा सद्बुद्धि-विवेक और अंतर्दृष्टि प्राप्त होती है।

बड़े कान - कहते हैं कि हमेशा सतर्क रहो, और कान के पक्के बनो। सुनी सुनाई बातों पर भरोसा मत करो। किसी के कान भरने पर बहको मत।

लम्बी सूड़ - परिस्थिति को सूंघ लो दूर से ही। अर्थात भविष्य की घटनाओं का पुर्वानुमान करके योजना बनाओ। ऐसे कार्य करो जिनके दूरगामी लाभ और परिणाम हों।

गणेश जी का एक दांत -गणेशजी एकदन्त हैं , जिसका अर्थ है एकाग्रता। जो यह कहता है कि डबल थॉट/दोहरे विचारो में मत उलझो। एक लक्ष्य निर्धारित करो और एक निष्ठ होकर उस पर डटे रहो। उठो आगे बढ़ो और तब तक मत रुको, जबतक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये।

गणेशजी का बड़ा पेट -  उदारता और आत्मीयता का प्रतीक है। अपने अंदर इतनी आत्मीयता रखो कि सर्वत्र बांटो।

गणेशजी का ऊपर उठा हुआ हाथ रक्षा का प्रतीक है – अर्थात, ‘घबराओ मत, मैं तुम्हारे साथ हूँ’ और उनका झुका हुआ हाथ, जिसमें हथेली बाहर की ओर है,उसका अर्थ है, अनंत दान, और साथ ही आगे झुकने का निमंत्रण देना – यह प्रतीक है कि हम सब एक दिन इसी मिट्टी में मिल जायेंगे ।

वे अपने हाथों में अंकुश लिए हैं, जिसका अर्थ है – जागृत होना , और पाश – अर्थात नियंत्रण । जागृति के साथ, बहुत सी ऊर्जा उत्पन्न होती है और बिना किसी नियंत्रण के उससे व्याकुलता हो सकती है । मन पर नियंत्रण हेतु मन की वृत्तियों पर अंकुश लगाना अनिवार्य है।

गणेशजी, हाथी के सिर वाले भगवान क्यों एक चूहे जैसे छोटे से वाहन पर चलते हैं? क्या यह बहुत अजीब नहीं है?
 फिर से, इसका एक गहरा रहस्य है । एक चूहा उन रस्सियों को काट कर अलग कर देता है जो हमें बांधती हैं| चूहा उस मन्त्र के समान है जो अज्ञान की अनन्य परतों को पूरी तरह काट सकता है, और उस परम ज्ञान को प्रत्यक्ष कर देता है जिसके भगवान गणेश प्रतीक हैं ।

हमारे प्राचीन ऋषि इतने गहन बुद्धिशाली थे, कि उन्होंने दिव्यता को शब्दों के बजाय इन प्रतीकों के रूप में दर्शाया, क्योंकि शब्द तो समय के साथ बदल जाते हैं, लेकिन प्रतीक कभी नहीं बदलते । तो जब भी हम उस सर्वव्यापी का ध्यान करें, हमें इन गहरे प्रतीकों को अपने मन में रखना चाहिये, जैसे हाथी के सिर वाले भगवान, और उसी समय यह भी याद रखें, कि गणेशजी हमारे भीतर ही हैं । यही वह ज्ञान है जिसके साथ हमें गणेश चतुर्थी मनानी चाहिये ।

अपने बच्चे को गणेश गायत्री मंत्र और उनके प्रतीक रूपों को समझाइए। उन्हें हमारी तरफ से गणेश चतुर्थी के शुभ अवसर पर ढेर सारा प्यार दीजिये।

साभार: - श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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